याद में जागती रह गई। प्यास की इक़ नदी रह गई।। आँख में कुछ नमी रह गई। ज़िंदगी अनमनी रह गई।। छोड़ रुख़सत हुए इस कदर, सूनी अपनी गली रह गई। आज बागी हुईं हैं ग़ज़ल, बेज़ुबा शायरी रह गई। एक अट्टालिका जब सजी, झोपड़ी देखती रह गई। ख़ूब समझी थी बारीकियां, पर कहाँ गड़बड़ी रह गई। कृष्ण- राधा जुडा नाम जब, विरहनी रुक्मणी रह गई। ज़िस्म केवलमिला ख़ाक में, शेष दीवानगी रह गई ©कमलेश मिश्र जागती रह गयी...