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ग़ज़ल :- अब नहीं हमसे ये नफ़रत होगी  जानकर तुमको भी 

ग़ज़ल :-
अब नहीं हमसे ये नफ़रत होगी 
जानकर तुमको भी  हैरत होगी 

थूककर चाटने वाले हो तुम
तुममें क्या कहने की हिम्मत होगी 

फूट घर में डालने की मेरे ।
मेरे अपनों की ही आदत होगी 

होंठ सिल लोगे सभी के सब फिर
नाम जो उनके वसीयत होगी 

हर तरफ़ चर्चा इसी का होगा 
की हमें उनसे मुहब्बत होगी 

लूट लेंगे हमें जलवे तेरे
उनमें कोई न मुरव्वत होगी 

इक दफ़ा देख प्रखर को मुड़कर 
क्या पता जीने की हसरत होगी 
    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
अब नहीं हमसे ये नफ़रत होगी 
जानकर तुमको भी  हैरत होगी 

थूककर चाटने वाले हो तुम
तुममें क्या कहने की हिम्मत होगी 

फूट घर में डालने की मेरे ।
ग़ज़ल :-
अब नहीं हमसे ये नफ़रत होगी 
जानकर तुमको भी  हैरत होगी 

थूककर चाटने वाले हो तुम
तुममें क्या कहने की हिम्मत होगी 

फूट घर में डालने की मेरे ।
मेरे अपनों की ही आदत होगी 

होंठ सिल लोगे सभी के सब फिर
नाम जो उनके वसीयत होगी 

हर तरफ़ चर्चा इसी का होगा 
की हमें उनसे मुहब्बत होगी 

लूट लेंगे हमें जलवे तेरे
उनमें कोई न मुरव्वत होगी 

इक दफ़ा देख प्रखर को मुड़कर 
क्या पता जीने की हसरत होगी 
    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
अब नहीं हमसे ये नफ़रत होगी 
जानकर तुमको भी  हैरत होगी 

थूककर चाटने वाले हो तुम
तुममें क्या कहने की हिम्मत होगी 

फूट घर में डालने की मेरे ।