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वर्षा ऋतु देखो है आई, चहुँ ओर हरियाली छाई, भानु कर

वर्षा ऋतु देखो है आई,
चहुँ ओर हरियाली छाई,
भानु करे आँख मिचौली,
गर्मी से कुछ राहत पाई।

वर्षा ऋतु देखो है आई,

बूंद लगे जैसे कोई मोती,
पत्तों की जो गोद में सोती।
हवा के झोंके संग झूली,
मिट्टी सोंधी सी है महकाई।

वर्षा ऋतु देखो है आई,

बादल उमड़ घुमड़ लगाए,
मोर का मन खूब ललचाए
पंख फैला करे अठखेली
देखो अंबुआ डाली बौराई।

वर्षा ऋतु देखो है आई,

पौधे लद गए सभी फूलों से,
कलियां रूप पाकर इतराई,
बच्चे करते छईं – छपाक,
तालाब, नदी सब उफ़नाई।

वर्षा ऋतु देखो है आई।

©अबोध_मन//फरीदा #बाल_कविता #अबोध_मन
वर्षा ऋतु देखो है आई,
चहुँ ओर हरियाली छाई,
भानु करे आँख मिचौली,
गर्मी से कुछ राहत पाई।

वर्षा ऋतु देखो है आई,

बूंद लगे जैसे कोई मोती,
पत्तों की जो गोद में सोती।
हवा के झोंके संग झूली,
मिट्टी सोंधी सी है महकाई।

वर्षा ऋतु देखो है आई,

बादल उमड़ घुमड़ लगाए,
मोर का मन खूब ललचाए
पंख फैला करे अठखेली
देखो अंबुआ डाली बौराई।

वर्षा ऋतु देखो है आई,

पौधे लद गए सभी फूलों से,
कलियां रूप पाकर इतराई,
बच्चे करते छईं – छपाक,
तालाब, नदी सब उफ़नाई।

वर्षा ऋतु देखो है आई।

©अबोध_मन//फरीदा #बाल_कविता #अबोध_मन