*पाखंड* बेटियों की कोख में हत्या करते हो कुंवारी कन्याओं को पूजते हो औरतों पर अत्याचार से न चूकते हो ऐसे पाखंड से खुद को दगा देते हो ! कैसे अपने आप को इंसान समझते हो ? बेटी बहु को तुल्य मानने का दंभ भरते हो बेटी के कष्ट को दर्द समझते हो बहु की पीड़ा को फर्ज़ कहते हो ऐसे पाखंड से खुद को दगा देते हो ! कैसे अपने आप को इंसान समझते हो ? माता पिता की नजरों से संसार देखते हो कष्ट होने पर वृद्धों से मुंह मोड़ लेते हो औलाद से बहुत उम्मीदें जोड़ लेते हो ऐसे पाखंड से खुद को दगा देते हो ! कैसे अपने आप को इंसान समझते हो ? दुनिया में छल बढ़ने पर चिंता जताते हो दूसरों को धोखा देना दुनियादारी बताते हो तुम्हारे साथ हो तो उसे मक्कारी मानते हो ऐसे पाखंड से खुद को दगा देते हो ! कैसे अपने आप को इंसान समझते हो ? ©Amit #Pakhand #OneSeason