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कहने, बोलने और बताने को, बहुत कुछ था मेरे मन में

कहने, बोलने और बताने को,
 बहुत कुछ था मेरे मन में ऐ दोस्त!
पर तुम्हारी बदलाव को देख,
सभी ख्यालों को अपने अंदर ही दबा दिया मैंने।
मैंने दोस्ती श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी सोंची थी,
पर वक़्त ने मित्रता को आधुनिक श्रंखला में ला कर खड़ा कर दिया।

©Anukaran
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Anukaran

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