आज फिर गुजरा इक दिन बिन तेरे, जो खयाल सलीके से, सजा रखे थे इस दिल में, इक इक कर, मुलाकात होती रही उनसे। नज़र और दिल थक कर लौटे हैं अभी, जिस्म तो जैसे सराए है इनके लिए। नफ्ज़ की आवाज़ जैसे इबादत तेरी, कुछ भी मेरा, अब मेरे बस में नहीं। आज फिर गुजरा इक दिन बिन तेरे, जो खयाल सलीके से , सज़ा रखे थे इस दिल में, मुलाकात होती रही उनसे। ©purvarth #फेस