घन घोर बदरा , और मन की तरंग , बिजलियाँ सी कौंध चंचल चित वन , प्रेम की खुश्बू उठती , जैसे पड़ती बूंद बूंद , माटी पे , लिए इक सावन , साजन मन कैसे समझें वो पिया मन घन घोर बदरा , और मन की तरंग घन घोर बदरा , और मन की तरंग #neerajwrites घनघोर बदरा