ज़ब फूटा भाग्य कली का वो फूल का विकास बन गया अचेतन की कंदराओं मे छिपा था जो ज्वर घृणा का आज चेतनता का वो अनुराग बन गया कोशिकाओं मे छुपा था जो धुंआ क्रोध का वही रूपसन्तरित होकर करुणा का वरदान बन गया आसक्ति की अकुलाहट से था जो मन बोझिल अब कहीं जाकर वो बैरागी बन गया . और जो. मौन व्याप्त था चराचर मे. अब तक वो भी मुखरित होकर आज मृदुभाष बन गया #रूपांतरण