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कागज पे स्याही कुछ ऐसे बिखर जाती है हर्फ-दर-हर्फ उ

कागज पे स्याही कुछ ऐसे बिखर जाती है
हर्फ-दर-हर्फ उसकी सूरत नजर आती है।

पन्ना-पन्ना भरा रहता है उसके अहसास से
ये हवा छूकर कुछ ऐसे गुजर जाती है।

मैं बैठता हूँ साथ जब भी उसकी यादों के
रंगत चेहरे की मेरे और निखर जाती है।।
       -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav
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