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हूं परेशां ज़िंदगी से, मौत भी आती नहीं सोचता हूं

हूं परेशां ज़िंदगी से, मौत भी आती नहीं 
सोचता हूं बारहा मैं, जान क्यों जाती नहीं

चल रही है सांस यूं तो पर कहां है ज़िंदगी
कोई शै अब इस शिकस्ता दिल को बहलाती नहीं

जब न हो मंज़िल कोई तो ज़िंदगी की चाह क्यों 
कुछ न अब इसमें बचा है, ये मुझे भाती नहीं
odysseus9022

Odysseus

Bronze Star
New Creator

हूं परेशां ज़िंदगी से, मौत भी आती नहीं सोचता हूं बारहा मैं, जान क्यों जाती नहीं चल रही है सांस यूं तो पर कहां है ज़िंदगी कोई शै अब इस शिकस्ता दिल को बहलाती नहीं जब न हो मंज़िल कोई तो ज़िंदगी की चाह क्यों कुछ न अब इसमें बचा है, ये मुझे भाती नहीं #ghazal

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