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वो सजदा ही क्या जिसमें सर उठाने का होश रहे, *इजहा

वो सजदा ही क्या जिसमें सर उठाने का होश रहे,

*इजहारे इश्क़ का मजा तो 
तब है*

जब मैं खामोश रहूं और 
तू बेचैन रहे। ख़ामोश।
वो सजदा ही क्या जिसमें सर उठाने का होश रहे,

*इजहारे इश्क़ का मजा तो 
तब है*

जब मैं खामोश रहूं और 
तू बेचैन रहे। ख़ामोश।

ख़ामोश। #शायरी