एक ख़ाब को हक़ीक़त बनाने के लिए मैं ज़माने से लड़ता रहा ज़माने के लिए हर्ज क्या है रूठने में मग़र गिन तो लूँ अहबाब कितने बाक़ी हैं मनाने के लिए इन्तेज़ार के हक़ में फिर इन्तेज़ार आया वादे कौन करे मुंतज़िर निभाने के लिए न जाने किस क़ाबिल था वजूद-ए-अदीब ऐ कलम तेरा शुक्रिया आज़माने के लिए हिसाब कर माज़ी क्या क्या गवाँ बैठे हम घर से निकले तो थे कुछ कमाने के लिए मेरे रुख़ पे नक़ाब है ये कौन जानता है मुस्कानें सजा रक्खी हैं दिखाने के लिए मेरे जिस्म पे तो ख़ुदा ने रहमतें लिखीं थी दिल बनाया था सैय्याद ने दुखाने के लिए एक ख़्वाहिश है मौत पे मेरी ज़िंदगी रोये 'क़ासिद' मुश्ताक़ हो मुक्कमल नींद से जगाने के लिए अहबाब - Friends - मित्र मुंतज़िर - One who waits -इन्तेज़ार करने वाला वजूद-ए-अदीब - Existence of the writer - लेखक का अस्तित्व माज़ी - Past - अतीत