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चाँद पर उकरे हुए उन चेहरों में, सूरज से खिले आख़ि

चाँद पर उकरे हुए उन चेहरों में, 
सूरज से खिले आख़िरी पहरों में,
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...

तू मेरे अपनों में शामिल नहीं थी,
तू मेरे ख़्वाबों में हासिल नहीं थी, 
फिर भी जाने कैसे मुझसे मिली तू,
मैं तो कभी तेरे क़ाबिल नहीं थी,
उम्मीद की डगमगाती किरणों में, 
कस्तूरी के पीछे भागती हिरणों में, 
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...

तेरा दिल छूलूँ ऐसा हुनर भी नहीं, 
तुझे अपना कहूँ  वो हक भी नहीं, 
फिर भी तूने नाम 'ज़िंदगी' दे दिया,
मुझे कोई तेरा कहे ऐसे पल भी नहीं, 
मौसम की इन बदलती हवाओं में,
फ़िज़ा की इन गुनगुनाती अदाओं में,
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...
चाँद पर उकरे........ही थी कहीं।
       -संगीता पाटीदार 'धुन'  चाँद पर उकरे हुए उन चेहरों में, 
सूरज से खिले आख़िरी पहरों में,
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...

तू मेरे अपनों में शामिल नहीं थी,
तू मेरे ख़्वाबों में हासिल नहीं थी,
चाँद पर उकरे हुए उन चेहरों में, 
सूरज से खिले आख़िरी पहरों में,
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...

तू मेरे अपनों में शामिल नहीं थी,
तू मेरे ख़्वाबों में हासिल नहीं थी, 
फिर भी जाने कैसे मुझसे मिली तू,
मैं तो कभी तेरे क़ाबिल नहीं थी,
उम्मीद की डगमगाती किरणों में, 
कस्तूरी के पीछे भागती हिरणों में, 
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...

तेरा दिल छूलूँ ऐसा हुनर भी नहीं, 
तुझे अपना कहूँ  वो हक भी नहीं, 
फिर भी तूने नाम 'ज़िंदगी' दे दिया,
मुझे कोई तेरा कहे ऐसे पल भी नहीं, 
मौसम की इन बदलती हवाओं में,
फ़िज़ा की इन गुनगुनाती अदाओं में,
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...
चाँद पर उकरे........ही थी कहीं।
       -संगीता पाटीदार 'धुन'  चाँद पर उकरे हुए उन चेहरों में, 
सूरज से खिले आख़िरी पहरों में,
मैंने तुझे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढ़ा, 
मगर तू मुझे मिली नहीं कहीं, 
क्योंकि तू मेरे अंदर ही थी कहीं...

तू मेरे अपनों में शामिल नहीं थी,
तू मेरे ख़्वाबों में हासिल नहीं थी,

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