बंद हैं, दिल के सारे गुज़र-गाह; अब लौट कर शौक़ से चले जाना तुम। बड़ी तकल्लुफ़ से समझाया है, ख़ुद को आज; एक रहमत करना हबीब, हो सके तो वापस, फ़िर ना आना तुम। -रूद्र प्रताप सिंह गुज़र-गाह*: रास्ता रहमत*: कृपा