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अजीब सी घुटन थी, न आवाज़ अँदर आ रही थी, न मेरी आ

अजीब सी घुटन थी, 
न आवाज़ अँदर आ रही थी, 
न मेरी आवाज़ किसी तक पहुँच रही थी, 
बस मैं वहाँ बेताब खड़ी थी।
 दरवाज़े कानों के, आँखों के भी, 
जब खोल दिये तूने प्रभू,
सब कुछ नए दृष्टिकोण से अनुभव कर रही हूँ!
मैं इस जग का हिस्सा बन,
पलों को जी रही हूँ।।

©Sita Prasad
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