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White सन्नाटे की गूंज में हकलाती स्याही में लिप

White   सन्नाटे की गूंज में हकलाती स्याही
 में लिपटे ख्वाबों की तलाश करता
वो बचपन ना जाने कब बीत गया।
ना कागज़ को खबर थी, ना कलम को एहसास
मुंडेर पर बैठ, पत्थर से नाम लिखने का क्या है राज़
दिन गुजरने लगे, जमाना बदलने लगा 
उम्मीद का सुरज, घूंघट की ओट करे मुस्कुराने लगा
कलम हाथ लगी, सुहाना सफर तय करने को
मगर क़िस्मत ने अंगुठा स्याही में भीगो दिया
और कलम टूट गई।।।।।।

©PRIYANSHI MITTAL
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