ऐ देश।। ऐ देश मुहब्बत तुझसे करूँ, तू इश्क तू ही महबूबा है। मैं आज कहूँ मैं सपने गहूँ, ये मन तुझमे ही डूबा है। ललकार रहा कोई द्वार तेरे, संतान तेरा ये सिपाही है। हर लम्हे में हर क्षण क्षण में, हमने ताकत दिखलायी है। कोई आंख उठे कोई हाथ उठे, एक वज्र बने हम डटे रहे। कोई धर्म मेरा मज़हब कोई, पर भाई बने हम सटे रहे। हिम्मत किसकी जुर्रत किसकी, जो आगे बढ़े और टक्कर ले। एक ज्वाला हम एक दावानल, एक पल में ख़ाक जो सब कर दे। कश्मीर मुकुट पग कन्या है, हीमराज से मस्तक ऊंचा है। आराध्य तू ही तू रब-देवी, तू अज़ान श्लोक और पूजा है। बची चाह नहीं अब जन्नत की, जी-जान जो तुमपे वारा है। दानव कह लूं या दैत्य कहुँ, तेरी धरा पर आ सब हारा है। तू अडिग रहे तू अविचल भी, सूरज सा दमकता भाल रहे। रहे अमिट समग्र वैभव तेरा, कदमों में तेरे ये लाल रहे। तू जननी मेरी तू ही माता है, शोणित से भी श्रृंगार हुआ। ये शीश न्योछावर चरणों मे, जीवन का अपना सार हुआ। तन-मन तेरा जीवन तेरा, रग रग में तेरा ही सूबा है। ऐ देश मुहब्बत तुझसे करूँ, तू इश्क तू ही महबूबा है। ©रजनीश "स्वछंद" ऐ देश।। ऐ देश मुहब्बत तुझसे करूँ, तू इश्क तू ही महबूबा है। मैं आज कहूँ मैं सपने गहूँ, ये मन तुझमे ही डूबा है। ललकार रहा कोई द्वार तेरे,