मेरे महबूब की मुझसे शिकायत कम नहीं होती मगर फिर भी मेरी उनसे मोहब्बत कम नहीं होती। लगाते हैं सरेबाजार ही इल्ज़ाम वो हम पर, कि हमपे बेवफ़ाई की इनायत कम नहीं होती। मनाया हमने कितनी बार उनको मिन्नतें कर कर, मगर फिर रूठ जाने की ये आदत कम नहीं होती। हज़ारों ग़म हैं दुनिया में उन्हें बस एक ही ग़म है, ज़ालिम की कभी मुझपे मुरव्वत कम नहीं होती। फ़लसफ़ा हमने भी जाना यही इस ज़िंदगी से है, मोहब्बत में "पिनाकी" ऐसी तोहमत कम नहीं होती। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #महबूब