उलझनों में उलझ गई जिंदगी मेरी मन तो बड़े अरमान लिए था किस्मत सो रही थी मेरी एक मूरत से बनकर बैठे थे एक छोर पर सपने जन्नत के से देख रहे थे सफर शुरू किया तो डगर में हम खड़े भी ना हो पा रहे थे रास्ते का मुआयना किया तो पाया मंजिल के बीच एक बड़ी खाई पड़ी थी पर मन में तो बड़े अरमानों की खुमारी चढ़ी थी चलते चलते थककर बैठ गए हम मोड़ पर अब जिंदगी नीरस हो चली थी सवालों के कटघरे में खड़े थे मंजिल और मेरे बीच न लांघ पाने वाली दीवार खड़ी थी बैठकर सोचते हैं न जाने कहां ले जायेगी जिंदगी मेरी मुश्किलों के सिलसिले खत्म ही नही होते उलझनों में ही उलझ के रह है गई जिंदगी मेरी ©NISHA DHURVEY #Dhund #उलझन