कविता कैसी भी हो उसे समझने मे कठनाई नहीं होती क्योंकि ज्यादातर रचनाओं मे आनंद वेदना प्रेम और आश्चर्य क़े भाव होते है और ये सारे भाव हर किसी मे प्रायः मौजूद ही होते हैँ अब ये बात अलग है क़ि उस रचना का जायज़ा अपनी अपनी पसंद से श्रोता या पाठक तय करते हैँ किसी को. वह रचना आध्यात्मिक यात्रा क़े लिए तैयार कर सकती है तो किसी मे प्रेम की पींगे बढ़ाने की दिलचस्पी से भर सकती है कोई विचलित या विक्षप्त श्रोता या पाठक उसे दर्शनशास्त्र का विषय बना सकता है या फिर कोई उस कविता को मधुर स्वरों मे गाकर गायक भी बन सकता है # कविता क़े रूप अरूप.......