इक लब की दूजे लब से अनन्त मीलों की दूरी साँसों की महक जैसे सब्जी के छौंक में मेथी कसूरी सोचा तो था ये सब तेरी आँखों से काजल चुराकर लिखते गर न मिलती स्याही तो होठों की लाली में डुबाकर लिखते ! मगर फिर सादा सरल स्मित रेखा में क्लिष्ट उलझाव हुआ साँसों से जो साँस टकराई फिर साँसों में भी शिष्ट ठहराव हुआ ये मेरी कल्पना से परे कि कैसे वो अदभुतता हो परिभाषित त्वचा पर जिसके लावण्य उतरा हो चंदन घिसते - घिसते नहीं तो सोचा था घूँघट भी माथे का कुमकुम चुराकर लिखते गर न मिलती स्याही तो होठों की लाली में डुबाकर लिखते ! नकफूल में हया के मूँगे की मीठी मँजूरी हिवड़े के धणी के इंतजार में हीना से लिपटी अँजुरी उक्त भावों को चलो मै अनुपम श्रृंगार बनाकर लिख दूँ बहुत ढूँढ़ ली स्याही चलो होठों की लाली में डुबाकर लिख दूँ ! कवि के भाव... 😊 लावण्य - सुन्दरता, रूप नकफूल - नाक का आभूषण हिवड़ा - दिल धणी - मालिक #yqdidi