उनकी न.जरों में मुझसे गुनाह हुई थी, उनसे मोहब्बत करने की .खता हुई थी, मगर यह फैसला कहां मेरा था, इसमें तो उनकी भी र.जा थी। अरमान तो उसके भी अल्फा.जों से झलकते थे, उनकी आंखों से अश्क जो छलकते थे, मगर इसमें चैन कहां मेरा था, इसमें तो उनके आंचल गीले थे। उनको आगोश में आना था, मेरे से मोहब्बत भी पाना था, मगर इसमें रजामंदी थी मेरी, उनको .जन्नत जो दिखाना था। उनको .जुनून की हद तक गुजरना था, उसके ज.ज्ब (मोह) में पड़ा मैं भी था, मगर यह गुनाह दोनों की थी, फिर भी सजा पाई सिर्फ मैंने सिर्फ मैंने।। #shayari #कविता #sangeet