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शब्दों की बूँदों की झलकार बनकर, मैं उभरा हूँ ज़िंद

शब्दों की बूँदों की झलकार बनकर,
मैं उभरा हूँ ज़िंदगी में क़लमकार बनकर,,
लिखूँ ऐसी कहानी, कविता और ग़ज़ल मैं,
लोगों के दिलों में बरस जाऊँ प्यार बनकर,,
पढ़कर छट जाएँ जीवन से मायूसी के अँधेरे,
सबके चेहरे पर छा जाएँ खुशियाँ बेशुमार बनकर,,

©Ved Prakash
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