हर तरफ ज़िक्र तेरा होता हैं मेरी आँखों को रौशनी दे दे हर तरफ नागवार गम ही रहे मुझे जैसी हो ज़िन्दगी दे दे मेरी तबियत उदास रहती हैं मुझे मौसम ही कुछ सही दे दे मेरे मौजूं बड़े ही काफ़िर हैं खुदा तुम जैसा हमनसी दे दे बड़े तकलीफ से गुज़रा हुआ हूँ मुझे पल भर की ही खुशी दे दे चलो संघर्ष को आवाज दे दे अपनी ताकत को नया ताज दे दे तुम तो अंधेर में ही आये थे कोई जलता दिया न था तुममे मैं अगर शांत हूँ तो मुल्जिम हूँ एक दबी आग जल रही मुझमें ©Shubham yadav मैं मैं हूँ