जो हक़ का खाऐ, वो है एक नेक इंसान। जो हक़ किसी का खाये, वो है यहां महां शैतान। बड़ी मुश्किल से, जानवर से इंसान बना, लगता है ऐसे जैसे, अब शैतान हो गया। इंसानों की बस्ती में, करूं तलाश संगरूरवी, मालूम नहीं कहां , खो भागवान गया। ©Sarbjit sangrurvi जो हक़ का खाऐ, वो है एक नेक इंसान। जो हक़ किसी का खाये, वो है यहां महां शैतान। बड़ी मुश्किल से, जानवर से इंसान बना, लगता है ऐसे जैसे,