मिल बैठेंगे जो हम दोनों एक रोज तो ये बादा वफ़ा करेंगे तुमसे कहने बाली हर बात को तुम्हारी बाहों में लिपट कर बयां करेंगे तुम पर गुजरी जो हमारे हिज़्र में वो हर बात मुकम्मल कर लेना अब तक की सारी मजबूरियों को हम ढलते सूरज के साथ विदा करेगें ©Azhar Raza