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आज मिलन की आठवीं , हो गई वर्षगाँठ । ऐसा अब त

आज  मिलन  की  आठवीं , हो  गई  वर्षगाँठ ।
ऐसा अब  तो  लग  रहा , बीते  युग हो साठ ।। १

पूस मास  की भोर को , धुंध  पड़ी  थी जोर ।
हम  दोनों ऐसे  मिले , जैसे  चाँद  चकोर ।। २

लेकर  बाहों  में  चले , उधर  कदम  जो  चार ।
वो बोले  ये  किसलिए ,  आखिर  हम  तैयार ।। ३

उधर  नगर  के  लोग  वो , बना  रहे  थे  योग ।
हम  दोनों  के मेल का , मिल न  सके  संयोग ।। ४

आखिर हम मिल ही गये , पकड़  प्रीत की डोर ।
देख  मुआ ये जग जला  , धुआँ उठा चँहु ओर ।। ५

बीस बरस का हो गया , सिया प्रखर का प्यार ।
लेकिन दोनो का कभी , बस  न  सका संसार ।। ६

बीस  बरस  के  बाद में , हुई  मिलन  की बात ।
पूस  मास  की  पंचमी ,  को  हुई  मुलाकात ।। ७

बीस  बरस  के  बाद  में , विरहन  बनती  रात ।
राहु  केतु  जैसे  यहां ,  किया  समय  ने  घात ।। ८

                          महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आज  मिलन  की  आठवीं , हो  गई  वर्षगाँठ ।
ऐसा अब  तो  लग  रहा , बीते  युग हो साठ ।। १

पूस मास  की भोर को , धुंध  पड़ी  थी जोर ।
हम  दोनों ऐसे  मिले , जैसे  चाँद  चकोर ।। २

लेकर  बाहों  में  चले , उधर  कदम  जो  चार ।
वो बोले  ये  किसलिए ,  आखिर  हम  तैयार ।। ३
आज  मिलन  की  आठवीं , हो  गई  वर्षगाँठ ।
ऐसा अब  तो  लग  रहा , बीते  युग हो साठ ।। १

पूस मास  की भोर को , धुंध  पड़ी  थी जोर ।
हम  दोनों ऐसे  मिले , जैसे  चाँद  चकोर ।। २

लेकर  बाहों  में  चले , उधर  कदम  जो  चार ।
वो बोले  ये  किसलिए ,  आखिर  हम  तैयार ।। ३

उधर  नगर  के  लोग  वो , बना  रहे  थे  योग ।
हम  दोनों  के मेल का , मिल न  सके  संयोग ।। ४

आखिर हम मिल ही गये , पकड़  प्रीत की डोर ।
देख  मुआ ये जग जला  , धुआँ उठा चँहु ओर ।। ५

बीस बरस का हो गया , सिया प्रखर का प्यार ।
लेकिन दोनो का कभी , बस  न  सका संसार ।। ६

बीस  बरस  के  बाद में , हुई  मिलन  की बात ।
पूस  मास  की  पंचमी ,  को  हुई  मुलाकात ।। ७

बीस  बरस  के  बाद  में , विरहन  बनती  रात ।
राहु  केतु  जैसे  यहां ,  किया  समय  ने  घात ।। ८

                          महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आज  मिलन  की  आठवीं , हो  गई  वर्षगाँठ ।
ऐसा अब  तो  लग  रहा , बीते  युग हो साठ ।। १

पूस मास  की भोर को , धुंध  पड़ी  थी जोर ।
हम  दोनों ऐसे  मिले , जैसे  चाँद  चकोर ।। २

लेकर  बाहों  में  चले , उधर  कदम  जो  चार ।
वो बोले  ये  किसलिए ,  आखिर  हम  तैयार ।। ३

आज मिलन की आठवीं , हो गई वर्षगाँठ । ऐसा अब तो लग रहा , बीते युग हो साठ ।। १ पूस मास की भोर को , धुंध पड़ी थी जोर । हम दोनों ऐसे मिले , जैसे चाँद चकोर ।। २ लेकर बाहों में चले , उधर कदम जो चार । वो बोले ये किसलिए , आखिर हम तैयार ।। ३ #कविता