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माना की तुमने ज़ख़्म हज़ारों खाए हैं तिनके तिनके

माना की तुमने ज़ख़्म हज़ारों खाए हैं 
तिनके तिनके बुनकर ये आशियाने सजाए हैं
टूट कर बिखर गए पर उफ्फ्फ न की‌ तुमने
तभी‌ तो जीवन के हसीं तराने आज पाए हैं

©Pankaj Kathpalia
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