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तृप्ति की कलम से शब्द-शब्द के भाव हैं, भावों के है

तृप्ति की कलम से
शब्द-शब्द के भाव हैं, भावों के है चित्र।
कौन समझ पाया यहाँ, उन भावों को मित्र।।1।।

शब्द-शब्द घायल हुआ, अक्षर रहा पुकार।
हे!निर्मोही क्यों गया , तू नदिया के पार।।2।।

इस दुनिया मे हर कही, बिखरा है संताप
अपने-अपने कर्म है, अपना पुण्य प्रताप।।3।।

संगत का पड़ता असर, कहते संत-सुजान।
बड़े-बड़े ज्ञानी फँसे, भूले अपना ज्ञान।।4।।

निश-दिन पत्थर तोड़कर, करती जीवन पार।
पत्थर को आकार दे, पत्थर से ही प्यार।।5।।

स्वरचित
तृप्ति अग्निहोत्री

©tripti agnihotri
  तृप्ति की कलम से दोहे

तृप्ति की कलम से दोहे #कविता

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