गीत :- द्वार माँ के आ गया हूँ आज सुनकर वंदना । दीप मन में जल गये हैं मातु की कर साधना ।। ज्ञान की देवी तुम्हीं हो दिख रहा संसार में । शीश सबके झुक रहे है आज तो दरबार में ।। हो कृपा सब पर यहाँ सब कर रहें.हैं अर्चना । द्वार माँ के आ गया हूँ..... हाथ पुस्तक और वीणा मातु तू है धारती । ज्ञान देकर आप जन को माँ सदा ही तारती ।। दूर हो जाता तिमिर जब भक्त करता कामना । द्वार माँ के आ गया हूँ ... माघ तिथि की पंचमी को मातु जन्मोत्सव हुआ । है खुशी की ये लहर सब भक्त करते हैं दुआ ।। मातु छवि मन मे बसाकर कर रहे हम कल्पना । द्वार माँ के आ गया हूँ ...। द्वार माँ के आ गया हूँ आज सुनकर वंदना । दीप मन में जल गये हैं मातु की कर साधना ।। १४/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- द्वार माँ के आ गया हूँ आज सुनकर वंदना । दीप मन में जल गये हैं मातु की कर साधना ।।