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बाबुल तेरे आँगन कि कली आज बचपन अपना छोड चली, भर


बाबुल तेरे आँगन कि कली
आज बचपन अपना छोड चली, 
भर आया है दिल हमारा
आज मै अपने पिया संग चली.. 
      फिर भी आज,, 
   बाबुल तेरे आँगन कि कली
   आज बचपन अपना छोड चली.
हाथ पकडकर चलना सिखाया
गिरने से संभलना सिखाया, 
बाबुल तेरा प्यार मैने 
जनम जनम तक पाया.. 
           फिर भी आज,, 
     बाबुल तेरे आँगन कि कली
     आज बचपन अपना छोड चली.
क्यों नशिब नही होता है
लडकियों को बाबुल का आँगन, 
छोड के जाना पडता है 
सब रिस्ते और सब वचन. 
           फिर भी आज,, 
     बाबुल तेरे आँगन कि कली
     आज बचपन अपना छोड चली.
कवी, दिपक सव्वासे.

©Love Story
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