यूंही नहीं हम जनाब टूटे हैं यूंही नहीं हम जनाब टूटे हैं हमारी जान के हाथों हमारे ख्वाब टूटे हैं जहां-जहां से तोड़े थे फूल हमने उनके खातिर हम से सारे वो बाग रूठे हैं के जिसमें पढ़ा था हमने सच्ची मोहब्बत कामयाब होती है हमारे नजर में अब वो सारे किताब झूठे हैं