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ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में हर घड

ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

©Dr. Arun Kumar
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