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मेरे बच्चे- बिहार का रुदन।। मेरे सरकार बता मुझको,

मेरे बच्चे- बिहार का रुदन।।

मेरे सरकार बता मुझको,
किस ख़ातिर तुझको वोट करूँ।
लिए गोद मे लाल को अपने,
इसका भी गला क्या घोंट मरूं।

मैं माता हूँ मेरी पीड़ा,
कानों में पिघल क्यूँ न गिरती है।
है कैसा मायाजाल बुना,
ममता भी दर दर फिरती है।

आज यहां तो कल को वहां,
क्या लाल जना है मरने को।
नौ नौ महीने खून पिलाया,
क्या कोख रखा है झरने को।

जिसे ज्ञान की नगरी कहते,
ज्ञान बना धृतराष्ट्र यहां।
मेरे लहु में खोट रही क्या,
क्या इनका नहीं है राष्ट्र यहां।

शरण मैं किसकी बोलो जाउँ,
बुद्ध भी पत्थर का बूत हुआ।
गांधी सुभाष के सपने थे,
देखो निर्जीव ये पूत हुआ।

बन गांधारी शाप मैं क्या दूँ,
किस कुल का संहार करूँ।
आंसू मेरे व्यर्थ न हों,
बस इतनी सी पुकार करूँ।

राजनीत का जला के चूल्हा,
रुदन पे ठहाके लगाते हो।
बस इतनी बात जरा कह दो,
बेशर्मी कहाँ से लाते हो।


कोख है उजड़ा, मैं ज़िंदा हूँ,
आहों को आंधी बनाउंगी।
तुमसे मुक्ति पाने को मैं,
फिर एक गांधी बनाउंगी।।

©रजनीश "स्वछंद" मेरे बच्चे- बिहार का रुदन।।

मेरे सरकार बता मुझको,
किस ख़ातिर तुझको वोट करूँ।
लिए गोद मे लाल को अपने,
इसका भी गला क्या घोंट मरूं।

मैं माता हूँ मेरी पीड़ा,
मेरे बच्चे- बिहार का रुदन।।

मेरे सरकार बता मुझको,
किस ख़ातिर तुझको वोट करूँ।
लिए गोद मे लाल को अपने,
इसका भी गला क्या घोंट मरूं।

मैं माता हूँ मेरी पीड़ा,
कानों में पिघल क्यूँ न गिरती है।
है कैसा मायाजाल बुना,
ममता भी दर दर फिरती है।

आज यहां तो कल को वहां,
क्या लाल जना है मरने को।
नौ नौ महीने खून पिलाया,
क्या कोख रखा है झरने को।

जिसे ज्ञान की नगरी कहते,
ज्ञान बना धृतराष्ट्र यहां।
मेरे लहु में खोट रही क्या,
क्या इनका नहीं है राष्ट्र यहां।

शरण मैं किसकी बोलो जाउँ,
बुद्ध भी पत्थर का बूत हुआ।
गांधी सुभाष के सपने थे,
देखो निर्जीव ये पूत हुआ।

बन गांधारी शाप मैं क्या दूँ,
किस कुल का संहार करूँ।
आंसू मेरे व्यर्थ न हों,
बस इतनी सी पुकार करूँ।

राजनीत का जला के चूल्हा,
रुदन पे ठहाके लगाते हो।
बस इतनी बात जरा कह दो,
बेशर्मी कहाँ से लाते हो।


कोख है उजड़ा, मैं ज़िंदा हूँ,
आहों को आंधी बनाउंगी।
तुमसे मुक्ति पाने को मैं,
फिर एक गांधी बनाउंगी।।

©रजनीश "स्वछंद" मेरे बच्चे- बिहार का रुदन।।

मेरे सरकार बता मुझको,
किस ख़ातिर तुझको वोट करूँ।
लिए गोद मे लाल को अपने,
इसका भी गला क्या घोंट मरूं।

मैं माता हूँ मेरी पीड़ा,

मेरे बच्चे- बिहार का रुदन।। मेरे सरकार बता मुझको, किस ख़ातिर तुझको वोट करूँ। लिए गोद मे लाल को अपने, इसका भी गला क्या घोंट मरूं। मैं माता हूँ मेरी पीड़ा, #Poetry #kavita