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अनुज वधु भ्रगणी सुत नारी सुन कन्या सत सम ये चारी।

अनुज वधु भ्रगणी सुत नारी 
सुन कन्या सत सम ये चारी। 
इनाहि कुदृष्टि जो ही बिलोकहीं
 ताहि वधे कछु पाप न हाई।।

रामचरितमानस ( तुलसीदास जी )

©Neetesh kumar
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