जज़्बात मेरे ढ़ल गए सारे अशआर में, है कैद में बुलबुल यहाँ फ़स्ल-ए-बहार में, अक्स-ए-रुख़-ए-यार से रौशन हुआ च़राग, पलकों पे उतर आई नींद इंतज़ार में, महफ़िल में दौर-ए-उल्फ़त अंजाम ये हुआ, गुजरी तमाम रात सुबह तक हूँ ख़ुमार में, छोटी सी ज़िन्दगी है महज चार दिनों की, कर आए खर्च सबकुछ नाहक उधार में, ख़ुद पर कोई ऊँगली न उठाए यहाँ 'गुंजन', पीछे पड़े रहते सभी गलती सुधार में, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ○प्र○ ©Shashi Bhushan Mishra #इंतज़ार में#