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ख्वाज़ा के दरबार पर सुकूँ नहीं हैं दिल को जो, ओ सुक

ख्वाज़ा के दरबार पर
सुकूँ नहीं हैं दिल को जो,
ओ सुकूँ सभी पा जाता हैं
मयखाने में होने के बाद ।।
©बिमल तिवारी "आत्मबोध" मदिरा
ख्वाज़ा के दरबार पर
सुकूँ नहीं हैं दिल को जो,
ओ सुकूँ सभी पा जाता हैं
मयखाने में होने के बाद ।।
©बिमल तिवारी "आत्मबोध" मदिरा