(ग़ज़ल) लाचारी के हालत को किसी तरह सिये जा रहा हूँ, ज़िन्दगी जैसी भी है अपनी बस जिये जा रहा हूँ! जिसने ता-उम्र ग़म बेचा मुझसे मुझे रुला कर, मैं उस बेवफ़ा के लिए खुशियाँ खरीदे जा रहा हूँ! उसके दिलों से मेरे रिश्ते का निशां मिटा जा रहा है, मै जिसके दिलों में चराग़-ए-इश्क़ जलाये जा रहा हूँ! वो मिटाते चल रहे हैं अपने क़दमो से मेरे निशां को, मैं उसकी हर निशां मिटने से बचाये जा रहा हूँ! उसने बदनाम किया मुझको कभी मेरे ही शहर में, मैं उसकी इज़्ज़त उसके शहर में बचाये जा रहा हूँ! अपनों पे भरोसा करके तुझे फ़रेब ही मिला'जित' इसलिए मै अब गैरों पे भरोसा किये जा रहा हूँ! #ग़ज़ल लाचारी के हालत को किसी तरह सिये जा रहा हूँ, ज़िन्दगी जैसी भी है अपनी बस जिये जा रहा हूँ! जिसने ता-उम्र ग़म बेचा मुझसे मुझे रुला कर, मैं उस बेवफ़ा के लिए खुशियाँ खरीदे जा रहा हूँ! उसके दिलों से मेरे रिश्ते का निशां मिटा जा रहा है,