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वो जो मूरत थी ना कहीं किसी कोने में संभाल कर रखी थ

वो जो मूरत थी ना
कहीं किसी कोने में
संभाल कर रखी थी
दिल के घरौंदे में

वो थोड़ी सी चटक रही है
पहले तो बहुत भाती थी
लेकिन अब खटक रही है

कहते हैं चटकी हुई मूरत को
घर में रखा नहीं करते
हटा दिया करते हैं उनको 
पर फेका नहीं करते 

चलो फिर अब उस मूरत का
 विसर्जन करते हैं
एक नई मूरत की तलाश में
 खुद को अर्पण करते हैं।

©जोतुष
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