हठी है, हठ मेरा, उसे हर रोज तोड़ती हूँ, मैं तुम्हारे हठ के आगे नहीं हारती, अपने हठ को हराने के लिए झुकती हूँ। होगा अविजीत अहं तुम्हारा, मैं उससे नहीं उलझती, मैं तो खुद से लड़ती हूँ,झुकती हूँ, झुक कर अपना ही अहं जीतती हूँ। हठी है, हठ मेरा, उसे हर रोज तोड़ती हूँ, मैं तुम्हारे हठ के आगे नहीं हारती, अपने हठ को हराने के लिए झुकती हूँ। होगा अविजीत अहं तुम्हारा, मेरी लड़ाई उससे नहीं, मैं तो खुद से लड़ती हूँ,झुकती हूँ, झुक कर अपना ही अहं जीतती हूँ।