चाह नहीं मैं, इस जगत में पूजा जाऊँ, चाह नहीं मैं, विद्वता समान कहलाऊँ। चाह नहीं मुझ पर, कोई उपकार कर दे, हे वीणावादिनी, हे विद्यादात्री माँ शारदे। चाह नहीं जग में, मैं अपना नाम कमाऊँ, चाह नहीं हृदय में, अभिमान को मैं लाऊँ। चाह नहीं खुशियों से, दामन मेरा तू भर दे, हे वीणावादिनी, हे विद्यादात्री माँ शारदे। चाह इतनी सी, मैं अभिमानी ना कहलाऊँ, चाह यही मैं सदा असहायों के काम आऊँ। मन से मेरे राग द्वेष को, दूर तू मेरा कर दे, हे वीणावादिनी, हे विद्यादात्री माँ शारदे। प्रतियोगिता संख्या #६ नमस्कार लेखकों/कातिबों 1:आज के इस विषय पर अपने बहुमूल्य विचार रखें। 2: पंक्ति बाध्यता नहीं केवल वालपेपर ही लिंखें। वर्तनी एवं विचार की शुद्धता बनाए रखें। 3: आप हमारी कोट को हाइलाइट करें।