122 122 122 12 कभी कोई हुआ इशारा नहीं जुबाँ से कभी वो पुकारा नहीं किये सजदे दर पर तेरे उम्र भर किसी और दर सर ये झुका नहीं सिला दे रहे जो वफ़ा का मुझे ऐसा तो कभी मैंने सोचा नहीं लगा दाग दामन पे ना मेरे तुम मुहब्बत में तो ऐसे होता नहीं तूफाँ में फ़ंसी किश्ती है मेरी मिला तुमसे भी तो सहारा नहीं जियें तो जियें कैसे बिन तेरे हम जमीं आसमाँ से गुजारा नहीं खुदा रहमते बक्श अपनी हमें बने कोई दुश्मन दुबारा नहीं ( लक्ष्मण दावानी ✍ ) 14/1/2017 ©laxman dawani #lonely #Love #Life #romance #Poetry #gazal #experience #poem #Poet #Knowledge