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ज़ख़्म गहरे हैं, फिर भी चेहरे पे शिकन नहीं, हमने ख

ज़ख़्म गहरे हैं, फिर भी चेहरे पे शिकन नहीं,
हमने खुद को समझा है, कोई ज़रूरत नहीं।
दर्द छुपाकर जीते हैं, सुकून में रहते हैं,
जिनसे उम्मीदें थीं, उनसे कोई शिकायत नहीं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़ख़्म गहरे हैं, फिर भी चेहरे पे शिकन नहीं,
हमने खुद को समझा है, कोई ज़रूरत नहीं।
दर्द छुपाकर जीते हैं, सुकून में रहते हैं,
जिनसे उम्मीदें थीं, उनसे कोई शिकायत नहीं।
ज़ख़्म गहरे हैं, फिर भी चेहरे पे शिकन नहीं,
हमने खुद को समझा है, कोई ज़रूरत नहीं।
दर्द छुपाकर जीते हैं, सुकून में रहते हैं,
जिनसे उम्मीदें थीं, उनसे कोई शिकायत नहीं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़ख़्म गहरे हैं, फिर भी चेहरे पे शिकन नहीं,
हमने खुद को समझा है, कोई ज़रूरत नहीं।
दर्द छुपाकर जीते हैं, सुकून में रहते हैं,
जिनसे उम्मीदें थीं, उनसे कोई शिकायत नहीं।