*** कविता *** *** दिल से *** " होश में मैं रह तो लूं , उनके नजदिकियों का ख्याल किस तरह ज़ाया करें , रहने दें इस खुमारी में ताउम्र , उन्हें भूला के अब कौन सा ग़म जरा लगाये दिल से , कहने को ये बात ही सिर्फ , अब कौन सी किसकी मुस्कान लाये दिल से , बिखर रही हैं सांसें दिल से , अब किसकी सांसों को धड़कन बनाये दिल से , होश में मैं रह तो लूं , अब भला किसकी तिसनगी उतारे दिल से किस के लिए , रुख हवाओं का किया हैं मैंने , उसकी महकती सांसों का जायजा कहीं मिल नहीं रहा दिल से , कहीं जो मिले सदा उसकी , ताउम्र के लिये दिल में पनाह दे दिल से ." --- रबिन्द्र राम *** कविता *** *** दिल से *** " होश में मैं रह तो लूं , उनके नजदिकियों का ख्याल किस तरह ज़ाया करें , रहने दें इस खुमारी में ताउम्र , उन्हें भूला के अब कौन सा ग़म जरा लगाये दिल से , कहने को ये बात ही सिर्फ ,