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जिने की तमन्ना में कही मर न जाये, महफिल में अ

जिने की  तमन्ना  में  कही  मर  न जाये,
महफिल में अपनो की रूह बन न जाये।

ठोकरो पर भी वो हमारी कही जल न जाये,
दर्द-ए-तजुर्बे में  उनसे आगे  निकल न जाये।

सोच  में पडे  है, ले उनकी  फितरत  को हम,
कही मरने में भी उनसे आगे निकल न जाये।

मर कर भी खुद को तारो में जिंदा पायेगे हम,
वरना  रूह  बनकर  भी भटक न पायेगे हम।

नफरतो में ही सही ताह उम्र उनके दिल में रहे,
कही मरने के बाद दिल से उनके निकल न जाये।
जिने की  तमन्ना  में  कही  मर  न जाये,
महफिल में अपनो की रूह बन न जाये।

ठोकरो पर भी वो हमारी कही जल न जाये,
दर्द-ए-तजुर्बे में  उनसे आगे  निकल न जाये।

सोच  में पडे  है, ले उनकी  फितरत  को हम,
कही मरने में भी उनसे आगे निकल न जाये।

मर कर भी खुद को तारो में जिंदा पायेगे हम,
वरना  रूह  बनकर  भी भटक न पायेगे हम।

नफरतो में ही सही ताह उम्र उनके दिल में रहे,
कही मरने के बाद दिल से उनके निकल न जाये।