जिंदगी की रफ्तार तेज क्या हुई.. नए दौर में सब शामिल हो गए.. किसी ने हमसे न पूछा.. हम क्यों पीछे रह गए.. अपने हिस्से की तमाम जिम्मेदारियों को निभाते हुए.. थोड़े कंधे झुके.. थोड़ी कमर हमारी झुकी.. आंखों से सब कुछ अब धुंधला हुआ.. इस तरह कदमों का लड़खड़ाना भी लाज़मी हुआ.. आज, इस मोड़ पर हम भी एक सहारा चाहते हैं.. तुम्हारे कदमों से अपनी रफ्तार मिलना चाहते हैं.. ©Poonam #सहारा #जिम्मेदारियां #मोड़ #रफ्तार