हम कुम्हार हैं, अपनी माटी के, नित्य नव-नव सृजन करते हैं, घूमते हुए जीवन के चाक पर, स्वयं अपनी किस्मत गढ़ते हैं। कुछ बन गया, कुछ बिगड़ गया, कुछ तो बनते-बनते ही रह गया, कुछ कच्चा है तो कुछ पक्का है, कुछ तो भट्टी में ही जल गया। अनवरत घूमता चाक जीवन का, क्या जानें कब ये रुक जाए, गढ़ रहे जो अपनी किस्मत को, कहीं डोर ना साँसों की टूट जाए। सुप्रभात। सच्चाई यही है कि अपनी माटी के कुम्हार हम ख़ुद ही हैं। कोई और हमें बना-बिगाड़ नहीं सकता। #कुम्हार #yqdidi #collab #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi