व्यक्ति हमेशा ही ख़ुद से पहले और उसके जीवन में उसके साथ जो कुछ भी घटित होता है उससे बाद में हारता है, क्युकी एक तरफ़ उसका दिमाग़ है जो कुछ भी घटित हुए को भुला देने में सक्षम है और वहीं दूसरी तरफ़ उसका दिल है जो कुछ भी घटित हुए की अनुभूति को भुला देने में सक्षम नहीं। यह अमिट सत्य सदियों से चला आ रहा है और यहां दिमाग़ और दिल दोनों का ही कोई दोष नहीं, क्युकी वे दोनों ही अपना कार्य कर रहे हैं। इस बीच हमारी हार या जीत हमारे स्वयं के अवचेतन के निर्णय पर निर्भर करती है, जो दिमाग़ और दिल दोनों से परे है और हमारे अंदर सुप्त ढंग से स्तिथ है। परन्तु अक़्सर व्यक्ति दिमाग़ और दिल के बीच हो रहे असमंजस का ही शिकार बना रहता है, जबकि यदि सुप्त अवचेतन को जाग्रत कर दोनों के बीच सामंजस्य बैठाकर निर्णय किया जाए तो व्यक्ति उलझता नहीं बल्कि सुलझता जाता है। ©Dakshata Sharma दिमाग़ और दिल #faraway