गिरते-गिरते संभल गए, समय पे हम भी बदल गए! काट के राती चार पहर की, बन सूरज हम निकल गए! कहते-कहते लोग थक गए, जो हम खुद पे अटल रहे! पर्वत हो चाहें लक्ष मेरा, हर प्रहार मेरा प्रबल रहें! जलते-जलते जल गए, स्वाभिमान में ही ढल गए! जो राहें थी, अंगार की, तो हौसलों पे चल गए... come back