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गिरते-गिरते संभल गए, समय पे हम भी बदल गए! काट के र

गिरते-गिरते संभल गए,
समय पे हम भी बदल गए!
काट के राती चार पहर की,
बन सूरज हम निकल गए!

कहते-कहते लोग थक गए,
जो हम खुद पे अटल रहे!
पर्वत हो चाहें लक्ष मेरा,
हर प्रहार मेरा प्रबल रहें!

जलते-जलते जल गए,
स्वाभिमान में ही ढल गए!
जो राहें थी, अंगार की,
तो हौसलों पे चल गए... come back
गिरते-गिरते संभल गए,
समय पे हम भी बदल गए!
काट के राती चार पहर की,
बन सूरज हम निकल गए!

कहते-कहते लोग थक गए,
जो हम खुद पे अटल रहे!
पर्वत हो चाहें लक्ष मेरा,
हर प्रहार मेरा प्रबल रहें!

जलते-जलते जल गए,
स्वाभिमान में ही ढल गए!
जो राहें थी, अंगार की,
तो हौसलों पे चल गए... come back
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