हम जंगल के फूल खिलाया तुम्हें बाग के माली ने, मुझे प्रकृति ने दुलराया तुमको पाला है माली ने। सूरज ने भी मुझे सताया वन जीवों ने भी तड़पाया, नियति कोप को स्वयं झेलकर तुम्हें बचाया माली ने। गर्म हवाओं ने झुलसाया रस-पराग भंवरे ने खाया, "हरित नीड़" निर्मित कर उसमें तुम्हें सुलाया माली ने। जैस्मीन,जूही या सूर्यमुखी,गेंदा, गुलाब,चंपा कोई, हर रंग रूप के फूल सदा सीने से लगाया माली ने। मेरे प्रांगण पतझड़-बसंत,सुंदर निर्झर, पर्वत,दिगंत, हर मौसम हो तेरा बसंत एहसास कराया माली ने। हम वीराने की शोभा थे कब खिले और कब बिखर गए, तुमको माला में पिरो वीरगति तक पहुँचाया माली ने। ----शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #तुमको पाला माली ने#